Wednesday, 24 January 2018

भरणी श्राद्ध

भरणी श्राद्ध : निधन के पहले वर्ष निषेध

भरणी श्राद्ध पितृपक्ष के भरणी नक्षत्र के दिन एकोद्दिष्ट पितृ को उद्देश्य कर किया जाता है परन्तु व्यक्ति के निधन के पहले वर्ष भरणी श्राद्ध नहीं होता। इसका कारण यह है कि प्रथम वार्षिक अब्दपूर्ति एवं वर्षश्राद्ध होने तक मृत व्यक्ति को प्रतत्व रहता है।

पहले वर्ष महालय के अन्तर्गत किसी भी श्राद्ध का अधिकार नहीं होता। ऎसा होने पर भी आग्रहपूर्वक पहले वर्ष भरणी श्राद्ध सम्पन्न किया जाता है। इसके लिए कोई ठोस शास्त्राधार नहीं है। प्रथम वर्ष के बाद भरणी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। वास्तव में भरणी श्राद्ध प्रतिवर्ष करने का शास्त्र संकेत है। किन्तु एक ही बार करने वाले व्यक्ति कम से कम प्रथम वर्ष भरणी श्राद्ध न करें। अनेक लोग अपने जीवन में कोई भी तीर्थ यात्रा नहीं कर पाते। ऎसे लोगों की मृत्यु होने पर उन्हें मातृगया, पितृगया, पुष्कर तीर्थ एवं बद्रिकेदार आदि तीर्थो पर किए गए श्राद्ध का फल मिले, इसके लिए भरणी श्राद्ध किया जाता है। जिन लोगों को अपने पितरों का श्राद्ध गयादि तीर्थो पर करने की तीव्र इच्छा हो किन्तु आर्थिक स्थिति या समयाभाव के कारण वे असमर्थ हों तो ऎसे समय मृत व्यक्ति को उद्देश्य कर भरणी श्राद्ध करना चाहिए। प्रत्येक वर्ष भरणी श्राद्ध करना हमेशा श्रेयस्कर रहता है।

इसे प्रथम महालय में न करते हुए दूसरे वर्ष से अवश्य करें। नित्य तर्पण में मृत व्यक्ति को पितृत्व का अधिकार प्राप्त होने पर ही उसके नाम का उच्चारण करें। इसे पहले साल न करें। फिर भी कुछ पुरोहितों के मतानुसार सपिंडीकरण तथा षोडशमासिक श्राद्ध आदि सभी विधि की तरह भरणी श्राद्ध भी करवा लें तो कोई दोष नहीं है। शास्त्रों के अनुसार भरणी श्राद्ध प्रथम वर्ष करवा लेने में भी कोई दोष नहीं होता।
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सं :- श्रीधर कुलकर्णी
ज्ञानामृत मंच समुह

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